रोते को भी हँसा देने,
भूखे को खिला देने.
अंधे - अपाहिजों को,
करा कर पार सड़क,
गंतव्य तक पहुंचा देने की,
भूली आदत जिस दिन
फिर सीख लेगा मानव.
इस धरती पर सचमुच,
इंसानियत और मानवता का
दिव्य साम्राज्य छा जायेगा,
और आदमी बन जाएगा-
मानव से - 'महामानव'.
फिर तो देवता भी
इस धरा पर आने को
हो जायेंगे उत्सुक.
दिव्य देह छोड़ के,
मानव देह धारण को
हो जायेंगे सहज ही प्रस्तुत.
भू लोक के देव भी
क्या अपने को रोक पायेंगे,
आयेंगे वे भी दौड़े - दौड़े,
अपना साम्राज्य जमायेंगे.
लेकिन;
सावधान मानव! सावधान!!
फिर यहाँ प्रमाद छा जाएगा.
जीवन में भोग और
विलासिता का दुर्गुण,
फिर से आ जाएगा.
देवता से धन और
वरदान के चक्कर में,
यह मानव पुनः भटक जाएगा.
और एक दिन यह सारा उत्कर्ष,
फिर मिट्टी में मिल जाएगा.
आज तो संवेदना प्रायः लुप्तप्राय ही हैं।
ReplyDeleteThanks for kind visit and comments.
ReplyDelete