यदि ऊर्जा है - सत्य
यदि पदार्थ है - सत्य
यदि प्रकाशक है - सत्य
यदि प्रकाश है - सत्य,
तो कैसे हो सकती है,
यह साया असत्य ?
अन्योन्याश्रित
सम्बन्ध है इसका
प्रकाश के साथ.
यदि दृश्य सत्य,
तो अदृश्य भी
नहीं असत्य.
साया घटती बढती नहीं.
प्रकट - गुप्त होती नहीं.
छोटी और बड़ी का भेद
तो दृष्टि दोष है हमारी.
भिन्नता साये में नहीं,
दृष्टि बदलते 'थीटा' में है.
यह कालिमा
भी है सत्य.. ,
दृश्य से बड़ा सत्य.
क्या प्रकश की
पूर्व पीठिका
नहीं है यह?
आखिर इस सृष्टि की
उत्पत्ति हुई तो है-
ब्लाक होल,
कृष्णविवर से ही.
भले ही यह ब्लैकहोल
अंतिम क्षणों में,
बिग बैंग के समय,
हिरण्यं और
सुवर्णयम क्यों
न हो गया हो.
'क़ाली' भी
गोरी होकर
'गौरी' क्यों न
बन गयी हो.
उसने वरण भी
कर्पूरगौरं शिव का
क्यों न किया हो.
शक्ति के अभाव में
शिव भी है, एक शव ही.
पदार्थ और पत्थर ही.
जिस प्रकार है जड़,
ये समस्त पदार्थ,
ऊर्जा के अभाव में.
चेतना और ऊर्जा तो
शिव-शक्ति का मिलन है.
उनकी हास-परिहास
लीला और उन्मीलन है.
अभाव में इस परिहास के
समस्त ऊर्जा सुप्त-सुषुप्त.
प्रलय-शून्य-महाशून्य.
यही सत्य है -
सबसे बड़ा सत्य.
शून्य से बड़ा सत्य और क्या हो सकता है।
ReplyDeleteआप हर रचना में वैज्ञानिक तथ्यों का जो समावेश करते हैं वह अद्वितीय है।