'पिता' कोई शब्द मात्र नहीं, वह 'शब्दकोश 'है
'पिता' एक शब्द नहीं, संतति का जयघोष है
बाजुओं मे जिसके, रक्षण - संरक्षण ही नहीं
मुख मे प्यार - दुलार, डांट -फटकार ही नहीं
उसके पास तो दायित्वों से परिपूर्ण है आगोश
सचमुच पिता शब्द नहीं है, वह तो 'शब्द कोश' है ॥
'पिता' एक शब्द नहीं, संतति का जयघोष है
बाजुओं मे जिसके, रक्षण - संरक्षण ही नहीं
मुख मे प्यार - दुलार, डांट -फटकार ही नहीं
उसके पास तो दायित्वों से परिपूर्ण है आगोश
सचमुच पिता शब्द नहीं है, वह तो 'शब्द कोश' है ॥
इस एक शब्द मे भरा हुआ है दायित्वों का सागर
अपनी नन्ही सी अंजुरी मे, कैसे भरूँ मैं ये सागर?
घर के अंदर, घर के बाहर, खेलों के भी मैदान मे
कहाँ-कहाँ नहीं दृष्टि है रहती, एक अकेली जान मे
हड्डी पसली घिसी पिटी है, फिर भी कितना जोश है
सचमुच पिता शब्द नहीं है, वह तो 'शब्द कोश' है ॥
अपनी नन्ही सी अंजुरी मे, कैसे भरूँ मैं ये सागर?
घर के अंदर, घर के बाहर, खेलों के भी मैदान मे
कहाँ-कहाँ नहीं दृष्टि है रहती, एक अकेली जान मे
हड्डी पसली घिसी पिटी है, फिर भी कितना जोश है
सचमुच पिता शब्द नहीं है, वह तो 'शब्द कोश' है ॥
इस एक शब्द की गाथा मे, रच जाऊँ चाहे मोटा ग्रंथ
पूरा नहीं मैं लिख पाऊँगा, करूँ चाहे जितना प्रयत्न
प्रशिक्षक कहूँ, कुंभकार कहूँ, या कहूँ मैं धोबी-माली
प्रताड़ना भी अच्छी लगती, प्यारी सी लगती थी गाली
कितनी कुलांचे भरते थे, बनकर मतवाला -मतवाली
भाई बहन कुछ समझ न पाते, कछुवा कौन खरगोश है
सचमुच पिता कोई शब्द नहीं है, वह तो 'शब्दकोश' है ॥
पूरा नहीं मैं लिख पाऊँगा, करूँ चाहे जितना प्रयत्न
प्रशिक्षक कहूँ, कुंभकार कहूँ, या कहूँ मैं धोबी-माली
प्रताड़ना भी अच्छी लगती, प्यारी सी लगती थी गाली
कितनी कुलांचे भरते थे, बनकर मतवाला -मतवाली
भाई बहन कुछ समझ न पाते, कछुवा कौन खरगोश है
सचमुच पिता कोई शब्द नहीं है, वह तो 'शब्दकोश' है ॥
पिता है तो साया है, बल है, संबल है, सभी सहारा है
पिता के बलबूते ही मन अबतक नहीं कभी भी हारा है
इस जीवन मे प्रगति पथ पर , बढ़ती है गति जिससे
शक्ति स्रोत कोई और नहीं, वह प्यारा पिता हमारा है
एक संस्कार जो दिया पिता ने, उसका अबतक होश है
इसीलिए दुहराता, पिता कोई शब्द नहीं, शब्द कोश है ॥
पिता के बलबूते ही मन अबतक नहीं कभी भी हारा है
इस जीवन मे प्रगति पथ पर , बढ़ती है गति जिससे
शक्ति स्रोत कोई और नहीं, वह प्यारा पिता हमारा है
एक संस्कार जो दिया पिता ने, उसका अबतक होश है
इसीलिए दुहराता, पिता कोई शब्द नहीं, शब्द कोश है ॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी
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