समय चलता रहा
हवा भी बहती रही
चलते तो हम भी रहे
लेकिन
न तो समय के साथ
न ही हवा के साथ,
हम कोई सूखे पत्ते तो नहीं
कि बिछड़े तो सूख ही जायेंगे,
इतने हलके भी तो नहीं कि
उड़ा सके हवा मनमाने ढंग से.
मानव हैं तो
समय को तो पढ़ ही लेंगे
मानव हैं तो
दिशा को पहचान ही लेंगे
किया है प्रयास कई बार
समय को रोक्ने का
हवा की दिशा मोड़ने का
परन्तु चलता ही चला गया
बहुत दूर तक भटकते भटकते
अपने ही किसी जूनून में
लिखता ही रहा कवता - कहानी
अपनी जिंदगी के मजमून में.
हमें क्या पता था
कि तुम नहीं संभलोगे
हमें क्या पता था
कि तुम नहीं बदलोगे
क्या तुम्हारा अंतर कभी
झकझोरता नहीं तुझे?
क्या मेरा दुलार भी
कभी बुलाता नहीं तुझे?
यदि हाँ, तो कहीं भी
जिंदगी के किसी मोड़ पर
आखिर मिले क्यों नहीं?
और यदि नहीं,
तब तो बात ही ख़त्म.
अंतर तो बस यही है
तुझमे और मुझमे
तुझे मेरी फटकार याद है,
मुझे तेरा प्यार याद है.
डॉ. जयप्रकाश तिवारी
हवा भी बहती रही
चलते तो हम भी रहे
लेकिन
न तो समय के साथ
न ही हवा के साथ,
हम कोई सूखे पत्ते तो नहीं
कि बिछड़े तो सूख ही जायेंगे,
इतने हलके भी तो नहीं कि
उड़ा सके हवा मनमाने ढंग से.
मानव हैं तो
समय को तो पढ़ ही लेंगे
मानव हैं तो
दिशा को पहचान ही लेंगे
किया है प्रयास कई बार
समय को रोक्ने का
हवा की दिशा मोड़ने का
परन्तु चलता ही चला गया
बहुत दूर तक भटकते भटकते
अपने ही किसी जूनून में
लिखता ही रहा कवता - कहानी
अपनी जिंदगी के मजमून में.
हमें क्या पता था
कि तुम नहीं संभलोगे
हमें क्या पता था
कि तुम नहीं बदलोगे
क्या तुम्हारा अंतर कभी
झकझोरता नहीं तुझे?
क्या मेरा दुलार भी
कभी बुलाता नहीं तुझे?
यदि हाँ, तो कहीं भी
जिंदगी के किसी मोड़ पर
आखिर मिले क्यों नहीं?
और यदि नहीं,
तब तो बात ही ख़त्म.
अंतर तो बस यही है
तुझमे और मुझमे
तुझे मेरी फटकार याद है,
मुझे तेरा प्यार याद है.
डॉ. जयप्रकाश तिवारी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (28.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया वहां पधार कर कमेन्ट अवश्य दे .
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज जी. आभार
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