Saturday, November 15, 2014

दृष्टि भेद

दुनिया में सबको
द्वेष तो दीखता है
नेह स्नेह अनुराग
कहाँ देखता है ?
रार दिखती है ...
तकरार दिखती है
फटकार दिखती है
स्वीकार दिखती है
लेकिन जो लड़ाई
मैं लड़ रहा हूँ
आप के लिए
अपने आप से
दूसरों को वह
दिखे या न दिखे
आप को भी
यह कहाँ दीखता है
कब देखा है आपने
रिस्ता हुआ शरीर
बहता हुआ लहू
फूटा हुआ माथा?
औरों की तरह
आपने भी तो
बना दिया है
मुझे एक तमाशा


- डॉ जयप्रकाश तिवारी


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